
संपादक की कलम से
शैलेश आनंद सोजवाल
वैसे तो शहरो में “केला” (पका हुआ फल) यदा-कदा आसानी से मिल ही जाता है और लोग आसानी से मिलने की वजह से ज्यादा उसका महत्व नहीं समझते लेकिन शहर से बाहर ग्रामीण अंचलो में केले का ख़ास महत्व देखने को मिलता है|
बीते दिनों शहर से बाहर जाने का मौका मिला, कार से बलौदाबाजार की तरफ निकल पड़ा, पक्की सडको के साथ साथ शहर छुट गया और ग्रामीण क्षेत्र आने लगा शहर से लगभग 40-50 किलोमीटर की दुरी के बाद एक छोटे से गाव में रुकने की ईच्छा हुई, पान की दूकान के समीप ही खड़ा होकर मोबाइल देख रहा था तभी कुछ बच्चे सामने आये जिन्हें देखकर मेरे मन में उन्हें कुछ देने का ख्याल आया और कार में रखे केले मैंने उन्हें निकाल कर देना शुरू किया ……….
पके हुए केले देखकर उन बच्चो की आँखों में अजीब का तेज़ देखने मिला सभी बच्चे उन केलो पर टूट पड़े….बड़े ही चाव के साथ मीठे केले का आनंद लेकर बच्चे बहुतही खुश नजर आ रहे थे उनकी ख़ुशी देखकर मुझे बड़ा ही आनंद महसूस हो रहा था जिसे भगवान् कृष्ण के प्रेम को पाकर राधा प्रफ्फुलित हो जाती है कुछ वैसा ही अनुभव हो रहा था………………..
एक बात और अगर आप किसी कार्य को बड़े ही मन से करे तो एक अजीब का अनुभूति होती है जिसका सुख शब्दों में बया नहीं किया जा सकता है…..खैर’ केले से मुझे एक मन को तीव्र शांति देने वाला अनुभव हुआ जिसका वृतांत हुबहू इस लेख में किया हु|
अब बात होती है केले के महत्व का शहरों में जहा “केला” आसानी से मिल जाता है ग्रामीण क्षेत्रो में केवल कस्बो में ही मिलता है गाव में अक्सर केले खाने नहीं मिलते जिसके चलते बच्चे केले को देखकर बेहद उत्साहित दिखे वही केले खाकर तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था……..मेरे मन में ये विचार कौंध रहा है कि अनजान से गाव में अनजान बच्चो को केला देकर जो सुख व् शांति का अनुभव मुझे हुए लाखो रूपये खर्च करने के बाद भी जिन्हें हम अपना कहते है उनसे वह सम्मान अपनापन नहीं मिलता जो अपनापन व सम्मान इन अनजान बच्चो ने दिया|