
दिल्ली के महरौली में कुतुब मीनार से कुछ दूरी पर सुल्तानपुर के पास नया शेरोज़ कैफे खुल गया है। यह दिल्ली में चौथा और देशभर में चौथा शेरोज़ कैफे है। इसकी खासियत यह है कि इसे पूरी तरह से एसिड अटैक और गंभीर रूप से जलने की शिकार महिलाएं चला रही हैं। कैफे की मैनेजर, वेटर, टीम लीड सभी जिम्मेदारियाँ 15 बहादुर महिलाओं के हाथ में हैं। यह कैफे न सिर्फ रोजगार का माध्यम है, बल्कि इन महिलाओं के आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता और समाज में सम्मानजनक स्थान बनाने की एक मिसाल भी है।
“आज इसी चेहरे से ग्राहकों को अंदर बुलाती हूँ”
मुजफ्फरनगर की 29 वर्षीय रूपा दिल्ली के नए शेरोज़ कैफे के गेट पर खड़े होकर मुस्कराते हुए ग्राहकों का स्वागत करती हैं। लेकिन इस मुस्कान के पीछे एक दिल दहला देने वाली कहानी छिपी है। सिर्फ 13 साल की उम्र में उनकी सौतेली मां ने सोते समय उन पर तेज़ाब फेंक दिया था। इसके बाद उनकी पढ़ाई नौवीं कक्षा में ही रुक गई और उन्हें 30 से ज्यादा सर्जरी झेलनी पड़ीं। रूपा कहती हैं,
“पांच साल तक मैं खाना भी मुंह ढक कर खाती थी। आज यही चेहरा दिखाकर ग्राहकों को अंदर बुलाती हूं।” लखनऊ, आगरा और नोएडा के शेरोज़ कैफे में ट्रेनिंग लेने के बाद रूपा को अब दिल्ली कैफे की टीम लीड बनाया गया है। उनकी यह भूमिका इस बात का प्रतीक है कि साहस और आत्मविश्वास किसी भी दर्द को शक्ति में बदल सकते हैं।
काजल ने झारखंड से दिल्ली तक का सफर तय किया
झारखंड के हंटरजंग गांव की 19 वर्षीय काजल 2022 में दसवीं की परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। इसी दौरान एक स्टॉकर की लगातार धमकियों से परेशान होकर काजल और उनकी मां ने पुलिस में शिकायत की। लेकिन इसी शिकायत का बदला लेने के लिए आरोपी ने रात में घर में घुसकर दोनों पर तेज़ाब फेंक दिया। हमले के बाद काजल को दिल्ली के AIIMS में महीनों तक इलाज कराना पड़ा। वह बताती हैं, “शुरू में लगा था कि अब कुछ नहीं बचेगा। कंप्यूटर भी नहीं चलाना आता था।”
लेकिन इसी निराशा के बीच उन्होंने खुद को नया मार्ग दिया। काजल ने ताज होटल में हॉस्पिटैलिटी ट्रेनिंग पूरी की और अब दिल्ली के शेरोज़ कैफे में कैश काउंटर संभालती हैं। उनकी मुस्कान और आत्मविश्वास यह बताते हैं कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी नया भविष्य बनाया जा सकता है।
मुस्कान अयोध्या से आईं, सपने वही रखे
अयोध्या की 18 वर्षीय मुस्कान 2021 में घर में खाना बना रही थीं, तभी रसोई में सिलेंडर फट गया और उन्हें गंभीर जलने की चोटें आईं। मुस्कान याद करती हैं, “घर वाले और रिश्तेदार कहते थे कि अब इसकी जिंदगी बर्बाद हो गई।” लेकिन मुस्कान ने खुद को उन बातों से टूटने नहीं दिया। वह आज बारहवीं बोर्ड की तैयारी भी कर रही हैं और साथ ही शेरोज़ कैफे में काम भी करती हैं। मुस्कान मुस्कराते हुए कहती हैं, “मेरे सपने किसी और 18 साल की लड़की से अलग नहीं हैं।” उनकी यह दृढ़ता साबित करती है कि हादसे इंसान की पहचान तय नहीं करते हौसला और आगे बढ़ने की इच्छा करती है।
इतनी लड़कियों को मिला सहारा
उन्होंने बताया कि छांव फाउंडेशन नाम की संस्था ने इन सभी महिलाओं को न सिर्फ सहारा दिया, बल्कि उन्हें एक नई दिशा और समाज में दोबारा अपनी जगह बनाने की शक्ति भी दी। आगरा, लखनऊ और नोएडा के शीरोज़ कैफे मिलाकर आज 150 से ज्यादा एसिड अटैक सर्वाइवर महिलाएं सम्मान के साथ काम कर रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं। कैफे का नाम ‘शीरोज़’ दो शब्दोंShe और Heroes से मिलकर बना है, जिसका मतलब है महिला नायिकाएं। दिल्ली वाले कैफे को रूपा, अंशु, काजल और सीमा सहित पांच बहादुर महिलाएं मिलकर संभाल रही हैं। रूपा कहती हैं, “हादसे के बाद महीनोंकई बार सालों तक हमने अपना चेहरा आईने में नहीं देखा था। बाहर निकलना तो बहुत दूर की बात लगती थी। लेकिन आज हम अपना चेहरा छुपाकर नहीं, बल्कि गर्व से दुनिया के सामने रखते हैं। हम मेहनत करके अपना घर चला रही हैं। चेहरा तो उन्हें छुपाना चाहिए, जिन्होंने हमारे साथ यह जुर्म किया था।”
कैफे की शुरुआत
रूपा ने बताया कि शेरोज़ कैफे की शुरुआत 2014 में आगरा से हुई थी। यह पहला कैफे था, जिसे एसिड अटैक सर्वाइवर्स ने अपने दम पर चलाया। इसके बाद 2016 में लखनऊ और 2022 में नोएडा स्टेडियम में नया कैफे खुला, जिसके लिए नोएडा अथॉरिटी ने विशेष रूप से जगह उपलब्ध कराई। रूपा बताती हैं कि 2008 में उन पर सौतेली मां ने एसिड फेंका था, जबकि अंशु राजपूत पर 2014 में एक 55 वर्षीय व्यक्ति ने हमला किया था। वहीं 18 वर्षीय काजल जोगी पर 2022 में एक लड़के ने एसिड अटैक किया था।
