शिक्षित होकर देश का भविष्य संवारने वाले बच्चे कबाड़ चुनकर पेट भरने है मजबूर

०० रोजाना कबाड़ चुनकर महज 50 रूपए की आमदनी है इन बच्चो की

०० समाज कल्याण विभाग के अधिकारी नहीं ले रहे घुमतु बच्चो की सुध

रायपुर| राजधानी के कई इलाको में कबाड़ चुनने वाले कई कम उम्र के बच्चे आसानी से देखने को मिल जाते है, दिन भर कबाड़ चुनकर उन्हें बिक्री कर जो पैसे मिलते है उनसे या तो वे पेट भरते है या गलत संगती की वजह से नशे के आदि बन रहे है| ऐसे घुमंतू बच्चो के लिए शासन ने समाज कल्याण विभाग की स्थापना तो कर दिया है लेकिन अधिकारियो को इतनी फुर्सत नहीं की शहर में ऐसे घुमतु बच्चो के लिए शासन की योजना का लाभ उन्हें दिला सके|

देश का प्रहरी वेब न्यूज़ पोर्टल के प्रधान संपादक शैलेश आनंद सोजवाल ने ऐसे ही घुमतु बच्चो की टोलियों से बात की तो उन्होंने बताया कि रोजाना सुबह से शाम तक कबाड़ चुनते है फिर उसे कबाड़ी को बेच देते है दिनभर में 50 रूपए का कबाड़ बिक्री करते है जिससे मिलने वाले पैसे से अपना पेट भरते है| स्कूल जाने के सवाल पर बच्चो ने कहा कि पढने लिखने का मन तो बहुत है मगर यहाँ पेट भरने के लिए पैसे नहीं है ऐसे में पढाई कैसे करे? बच्चो के इस सवाल ने मन झझकोर रख दिया कि शासन-प्रशासन ऐसे घुमतु बच्चो के लिए आखिर क्यों कोई योजना लेकर नहीं आती जो इन बच्चो को शिक्षित कर सके|

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